Trump के बयान और संरक्षणवाद से डगमगाता India-US रिश्ता

---Advertisement---

पिछले कुछ समय में भारत और अमेरिका के संबंधों में जो खटास आई है, वह अचानक नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की गैरजिम्मेदाराना टिप्पणियां और आत्मकेंद्रित आर्थिक नीतियां इस रिश्ते को गहरी चोट पहुंचा रही हैं। एक ओर जहां भारत इन बयानों को अनदेखा कर संयम बरत रहा है, वहीं ट्रंप का अंदाज लगातार तनाव को हवा दे रहा है।

पिछले ढाई दशक में भारत-अमेरिका रिश्ते जिस मेहनत से मजबूत हुए, उन्हें ट्रंप की सनक और संरक्षणवादी सोच डगमगा रही है। चाहे वह व्यापारिक टैरिफ हो, भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की बात हो या फिर एप्पल जैसी कंपनियों के भारत में निवेश को रोकने की कोशिश—ट्रंप की हर टिप्पणी में गैर-राजनयिक लहजा झलकता है। उन्होंने भारत को ‘टैरिफ किंग’ तक कह डाला और अमेरिका में सभी आयातों पर 10% टैरिफ लगाने का ऐलान किया। भारत से आने वाले उत्पादों पर तो उन्होंने 26% तक शुल्क लगाया।

यह रवैया दिखाता है कि ट्रंप को लगता है जैसे उनकी टिप्पणियों का कोई वैश्विक असर नहीं होगा। वह खुद को नई वैश्विक व्यवस्था के निर्माता के तौर पर पेश करते हैं, लेकिन उनकी सोच और कार्यशैली पुराने जमाने की है—19वीं सदी जैसा नजरिया लेकर वह 21वीं सदी की जटिलताओं को समझ नहीं पा रहे हैं।

ट्रंप यह दावा करते हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध टाल दिया। यह एक खोखला दावा है। सच्चाई यह है कि भारत ने बालाकोट जैसे आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई करने से पहले ट्रंप से कोई राय नहीं ली थी। दोनों देशों ने संघर्षविराम का रास्ता इसलिए चुना क्योंकि वे टकराव को बढ़ाना नहीं चाहते थे, न कि ट्रंप की मध्यस्थता के चलते।

कुछ भारतीयों को अब भी उम्मीद है कि ट्रंप चीन के खिलाफ मजबूत रुख अपनाएंगे और भारत का साथ देंगे। लेकिन उन्हें समझना होगा कि ट्रंप की पहली और अंतिम प्राथमिकता केवल अमेरिका है। अगर भारत उनके लक्ष्यों में फिट नहीं बैठता, तो वह भारत को भी नजरअंदाज करने में संकोच नहीं करेंगे।

ट्रंप के संरक्षणवादी एजेंडे का ताजा उदाहरण है उनकी टिप्पणी कि एप्पल को भारत में मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने के बजाय अमेरिका में यूनिट लगानी चाहिए। इससे स्पष्ट है कि भारत को यह गलतफहमी नहीं पालनी चाहिए कि उसे ट्रंप प्रशासन से कोई विशेष रियायत मिलेगी।

फिर भी, एक सकारात्मक संकेत यह है कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर बातचीत जारी है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल इस दिशा में प्रयासरत हैं और तीन चरणों वाले समझौते की रूपरेखा तय हो चुकी है। लेकिन जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक व्यापार में गिरावट दोनों देशों को आर्थिक नुकसान पहुंचा सकती है।

ट्रंप की नीतियों ने अमेरिका की वैश्विक साख को भी झटका दिया है। उनके शब्द और फैसले यह दर्शाते हैं कि वे केवल अपनी लोकप्रियता और आंतरिक राजनीति के लिए खेल रहे हैं, न कि वैश्विक स्थिरता के लिए।

भारत को अब कूटनीतिक समझदारी से काम लेते हुए अपनी संप्रभुता और हितों की रक्षा करनी होगी। अमेरिका के साथ संबंध जरूर जरूरी हैं, लेकिन ये किसी एक व्यक्ति की सनक पर नहीं टिके हो सकते।

भारत-अमेरिका संबंधों को बनाए रखना आज पहले से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है। जब एक पक्ष अनुशासन और संयम दिखा रहा हो, और दूसरा केवल अपने स्वार्थ की सोच रहा हो, तब संतुलन बनाए रखना ही सबसे बड़ी कूटनीति बन जाती है। हमें सावधान भी रहना होगा और सचेत भी—क्योंकि ट्रंप जैसे नेताओं की अनदेखी कभी-कभी बहुत भारी पड़ सकती है।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

Join WhatsApp

Join Now

Leave a Comment