राजस्थान की वीरभूमि हमेशा से अपने शूरवीरों और बलिदानियों की गाथाओं से जगमगाती रही है। यहां की मिट्टी ने अनगिनत सपूत ऐसे पैदा किए जिन्होंने राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। इन्हीं में से एक नाम है सीकर जिले के बाडलवास गांव के लाल शहीद अमरचंद पारीक का। सन 1965 के भारत-पाक युद्ध में उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए अदम्य साहस और शौर्य का परिचय दिया और वीरगति को प्राप्त हुए।
उनकी शहादत को याद करते हुए और आने वाली पीढ़ियों को राष्ट्रभक्ति की भावना से जोड़ने के उद्देश्य से हर वर्ष उनकी स्मृति में बाडलवास गांव में शहीद दिवस समारोह और मेला आयोजित किया जाता है। इस बार यह आयोजन और भी खास है क्योंकि यह शहादत का 60वां वर्ष है। इस अवसर पर 14 और 15 सितम्बर को गांव में दो दिवसीय भव्य मेला और धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।

आयोजन की रूपरेखा
मंदिर समिति और ग्रामवासियों के सहयोग से होने वाले इस कार्यक्रम की तैयारियाँ जोर-शोर से चल रही हैं। मंदिर समिति के सदस्य अंकित कुमार पारीक ने जानकारी दी कि आयोजन मंदिर के पुजारी श्री रामप्रसाद जी पारीक के सानिध्य में होगा।
14 सितम्बर – पहला दिन
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शाम को धाम की भव्य सजावट की जाएगी। पूरा परिसर रोशनी और फूलों से सुसज्जित होगा।
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रात को देशभक्ति के रंग में डूबी विराट भजन संध्या का आयोजन होगा, जिसमें बाहर से आए हुए कलाकार और संत मंडली देशभक्ति गीत व भजन प्रस्तुत करेंगे।
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भजन संध्या के तुरंत बाद रात करीब 1:15 बजे भव्य आतिशबाजी का कार्यक्रम होगा, जो आसमान में देशभक्ति के रंग बिखेरेगी।
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इस दिन जगह-जगह से निशान पदयात्री भी धाम पहुंचेंगे और श्री झुंझार जी महाराज को निशान अर्पित करेंगे।
15 सितम्बर – दूसरा दिन
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सुबह 8:15 बजे महाज्योत प्रज्वलन और भव्य आरती होगी।
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इसके बाद 9:15 बजे झंडारोहण और पुष्पांजलि का आयोजन होगा, जिसमें ग्रामीण, भक्तगण और समिति सदस्य शहीद को श्रद्धांजलि देंगे।
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सुबह 10:15 बजे से संगीतमय सुंदरकांड पाठ होगा, जिसमें भक्तगण बड़ी संख्या में शामिल होंगे।
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इसके बाद 11:15 बजे से विशाल भंडारे का आयोजन होगा, जिसमें हजारों श्रद्धालु प्रसादी ग्रहण करेंगे।
शहीद अमरचंद पारीक जी ( श्री झुंझार जी महाराज ) की शौर्यगाथा
बाडलवास गांव का हर निवासी गर्व से शहीद अमरचंद पारीक का नाम लेता है। वे केवल गांव के ही नहीं बल्कि पूरे देश के गौरव हैं। 1965 के भारत-पाक युद्ध में उन्होंने सीमा पर दुश्मनों से लोहा लेते हुए मातृभूमि की रक्षा की और अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। उनकी शहादत ने आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाया कि देश की सेवा सर्वोच्च कर्तव्य है।
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि अमरचंद बचपन से ही तेज, साहसी और जिज्ञासु स्वभाव के थे। सेना में भर्ती होना उनका सपना था और उन्होंने इसे पूरा भी किया। युद्ध के समय उन्होंने अपनी टुकड़ी के साथ बहादुरी से मोर्चा संभाला और आखिरी सांस तक वीरता से लड़े।
आज भी उनकी स्मृति को संजोने के लिए गांव में मंदिर और धाम बने हुए हैं, जहाँ हर वर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।
“गांव वाले अब उन्हें झुंझार जी महाराज के रूप में मानते है , अपनी मनोकामनाओं के लिए उनसे मन्नत भी मांगते है, तो वही बाबा उनकी मनोकामनाएं पूर्ण भी करते है। ”
गांव और भक्तों का उत्साह
इस बार का आयोजन खास महत्व रखता है क्योंकि यह 60वां शहादत दिवस है। इसी कारण गांववाले और समिति इस आयोजन को ऐतिहासिक रूप देने में जुटे हुए हैं।
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गांव के युवाओं ने धाम तक पहुंचने वाले रास्तों की मरम्मत और सजावट का जिम्मा उठाया है।
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महिलाओं ने भजन मंडलियों के साथ आयोजन को भक्ति और आस्था से भरने की तैयारी की है।
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बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए आवास, पानी और भोजन की विशेष व्यवस्था की गई है।
समिति का कहना है कि इस बार देशभर से बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचेंगे। खासकर राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और यूपी से पदयात्रियों का जत्था यहां आने वाला है।
मेले का सांस्कृतिक महत्व
यह आयोजन केवल एक धार्मिक मेला नहीं बल्कि देशभक्ति, आस्था और संस्कृति का संगम है।
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भजन संध्या में देशभक्ति गीतों और भजनों के माध्यम से शहीद की गाथा गाई जाएगी।
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सुंदरकांड पाठ के जरिए आध्यात्मिक माहौल तैयार होगा।
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भंडारे में सामूहिक भोजन की परंपरा सामाजिक एकता और भाईचारे का संदेश देती है।
गांववाले कहते हैं कि यह मेला केवल श्रद्धा का प्रतीक नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देने वाला अवसर है।
गांववासियों और समिति की अपील
मंदिर समिति और ग्रामवासियों ने सभी भक्तों से अपील की है कि वे इस आयोजन में बड़ी संख्या में शामिल होकर शहीद की स्मृति को नमन करें। उनका मानना है कि इस तरह के आयोजन युवाओं को देशभक्ति और बलिदान के महत्व से परिचित कराते हैं।
सीकर जिले का बाडलवास गांव एक बार फिर राष्ट्रभक्ति के रंग में रंगने वाला है। 14 और 15 सितम्बर को होने वाला यह दो दिवसीय आयोजन न केवल एक शहीद की स्मृति को संजोने का प्रयास है बल्कि आने वाली पीढ़ियों को देश सेवा के लिए प्रेरित करने का भी माध्यम है।










