“ज़हर बन गई मुफ़्त दवा योजना: राजस्थान में कफ सिरप से बच्चों की मौत और सिस्टम की बेपरवाही”
लेखक: BL MAAN संपादक, उजला दर्पण
“ज़रा सोचिए…”
आप अपने बच्चे को सरकारी अस्पताल लेकर जाते हैं। डॉक्टर भरोसे के साथ सरकारी योजना के तहत दी गई मुफ़्त दवा देता है। आप वही सिरप बच्चे को पिलाते हैं, इस उम्मीद में कि अब वह ठीक हो जाएगा। लेकिन इलाज की जगह वही सिरप उसकी हालत और बिगाड़ देता है। यह किसी फिल्म की कहानी नहीं — राजस्थान की हकीकत है।
पिछले कुछ दिनों में राज्य के कई ज़िलों से जो घटनाएँ सामने आईं, उन्होंने पूरे हेल्थ सिस्टम की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं। मुफ़्त दवा योजना के तहत बाँटे गए Dextromethorphan Hydrobromide आधारित कफ सिरप से अब तक कम से कम दो बच्चों की मौत हो चुकी है, जबकि कई बच्चे गंभीर रूप से बीमार हैं।
भरतपुर का चौंकाने वाला मामला
सबसे सनसनीखेज़ मामला भरतपुर का है, जहाँ एक सरकारी डॉक्टर ने दवा की सुरक्षा साबित करने के लिए खुद वही सिरप पी लिया — और कुछ घंटों बाद अपनी कार में बेहोश मिला। सवाल यह है कि जब डॉक्टर ही इस दवा से बेहोश हो जाए… तो आम लोगों की जान कितनी सुरक्षित है?
यह कफ सिरप Kaysons Pharma नामक कंपनी ने तैयार किया था। कागज़ों में दवा “सुरक्षित” बताई गई थी, लेकिन हकीकत इसके उलट निकली। रिपोर्ट्स के मुताबिक़, इस दवा के कई बैच पहले ही क्वालिटी टेस्ट में फेल हो चुके थे। इसके बावजूद, इन्हें सरकारी अस्पतालों तक सप्लाई कर दिया गया।
RMSCL की भूमिका पर सवाल
जाँच में खुलासा हुआ है कि इन दवाओं की सप्लाई Rajasthan Medical Services Corporation Limited (RMSCL) के माध्यम से की गई थी। आरोप है कि जब कुछ बैच क्वालिटी टेस्ट में फेल हुए, तो कुछ प्राइवेट लैब्स से “क्लीन चिट” दिलवा दी गई।
अब सवाल उठता है — क्या सिस्टम ने जानबूझकर आँखें मूँद लीं? या फिर किसी ने सुनिश्चित किया कि फेल बैच भी पास हो जाएँ?
यह केवल लापरवाही नहीं, बल्कि मिलीभगत का शक पैदा करती है। अगर सरकारी खरीद एजेंसी और प्राइवेट लैब्स मिलकर गुणवत्ता रिपोर्ट में हेरफेर करें, तो “जनहित” के नाम पर चल रही योजना वास्तव में जनघातक बन जाती है।
सरकार की देर से जागी नींद
मामला सामने आने के बाद सरकार हरकत में आई —
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संदिग्ध 22 बैच बैन किए गए,
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ड्रग कंट्रोलर निलंबित हुआ,
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पूरे राज्य में Dextromethorphan सिरप पर रोक लगी,
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और Kaysons Pharma के खिलाफ जाँच शुरू हुई।
लेकिन यह सब डैमेज कंट्रोल जैसा लगता है। क्योंकि असली नुकसान पहले ही हो चुका है — बच्चे मर चुके हैं, परिवार उजड़ चुके हैं।
गरीब की उम्मीद टूटी, सिस्टम की साख गिरी
जो परिवार सरकारी अस्पतालों में इसलिए जाते हैं क्योंकि प्राइवेट इलाज महँगा है — उनके लिए मुफ़्त दवा योजना एक उम्मीद थी। लेकिन वही योजना अब उनके बच्चों की मौत का कारण बन गई। एक माँ ने रोते हुए कहा —
“हमने सरकारी दवा पर भरोसा किया… लेकिन उसी ने मेरा बच्चा छीन लिया।”
क्या सरकार के पास इस माँ के सवाल का कोई जवाब है? “जाँच चल रही है” कह देना क्या काफी है? क्या रिपोर्ट आने से उस माँ का बच्चा लौट आएगा?
सिस्टम की पोल खुल गई
यह सिर्फ़ एक दवा की कहानी नहीं — यह पूरे सिस्टम की विफलता की कहानी है।
अगर क्वालिटी टेस्ट में फेल दवाएँ सरकारी अस्पताल तक पहुँच सकती हैं, तो फिर दवा नियामक तंत्र का अस्तित्व ही बेकार है।
अगर बार-बार पकड़ी गई कंपनियाँ फिर भी दवा बेचती रहें, तो सवाल उठता है — कौन उनकी रक्षा कर रहा है?
अंतिम सवाल — जवाबदेही का
राजस्थान की यह “दवा कांड” सिर्फ़ एक हादसा नहीं है। यह एक सवाल है — जवाबदेही का।
कौन जिम्मेदार है इन मौतों का? RMSCL? Kaysons Pharma? या फिर पूरा सिस्टम?
क्या दोषियों को सज़ा मिलेगी? या यह मामला भी बाकी घोटालों की तरह फाइलों के नीचे दब जाएगा?
राज्य सरकारों को याद रखना होगा — जनकल्याण योजनाएँ तभी सार्थक हैं जब उनमें जनसुरक्षा शामिल हो।
अगर मुफ़्त इलाज ज़हर बन जाए, तो यह सबसे बड़ा प्रशासनिक अपराध है।
राजस्थान की यह घटना चेतावनी है — सिर्फ़ इलाज नहीं, सिस्टम का इलाज भी ज़रूरी है।









