जबलपुर नगर निगम के कमिश्नर की सक्रियता के बावजूद ज़मीनी हालात जस के तस हैं। सवाल यह उठता है—जब अधिकारी मेहनत कर रहे हैं, तो जिम्मेदार कर्मचारी लापरवाह क्यों?

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“स्वच्छता के नाम पर सिर्फ दिखावा? जोन क्रमांक 15 के दद्दा नगर की सच्चाई चौकाने वाली है!”

जबलपुर नगर निगम के कमिश्नर की सक्रियता के बावजूद ज़मीनी हालात जस के तस हैं। सवाल यह उठता है—जब अधिकारी मेहनत कर रहे हैं, तो जिम्मेदार कर्मचारी लापरवाह क्यों?

जोन क्रमांक 15 के दद्दा नगर में गंदगी का आलम ऐसा है कि नालियां बजबजा रही हैं, बदबू से लोग बीमार हो रहे हैं, लेकिन निगम के सफाई अमले को जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता।

रहवासियों का कहना है—“नालियों की सफाई कभी नहीं होती, और जो कचरा गाड़ी रोज आनी चाहिए, वह हफ्ते में एक बार आती है।” घरों में बोरियों में कचरा जमा है, मच्छर पनप रहे हैं, बीमारी फैलने का खतरा मंडरा रहा है।

जब इस बारे में स्वच्छता अधिकारी से बात की गई तो उनका सीधा जवाब था—“हम रोज सफाई करवाते हैं।”

वहीं जोन सीएसआई धर्मेंद्र राज का दावा है—“हम रोज डोर-टू-डोर गाड़ी भेजते हैं, हमारे पास ड्राइवर की रिपोर्टिंग है।”

तो सवाल उठता है—ड्राइवर की रिपोर्ट क्या सच्ची है या सिर्फ फॉर्मेलिटी?

क्या धर्मेंद्र राज खुद कभी फील्ड में गए हैं? या फिर दद्दा नगर के रहवासी झूठ बोल रहे हैं?

जब सीधा सवाल धर्मेंद्र राज से किया गया, तो उन्होंने स्वच्छता से जुड़ी शिकायतों को नजरअंदाज करते हुए कॉलोनाइज़र पर ठीकरा फोड़ दिया—“ये कॉलोनी गलत ढंग से बसी है, निकासी की व्यवस्था ही नहीं है।”

क्या यही है नगर निगम की जवाबदेही

क्या जबलपुर के हर जोन में स्वच्छता केवल कागज़ों पर ही है? फील्ड में तो हालात बदतर हैं। रोजाना झाड़ू तक नहीं लगती, और कचरा हफ्तों तक नहीं उठाया जाता।

रहवासियों की मांग सीधी है

नालियों की जल्द से जल्द सफाई की जाए।

कचरा गाड़ी को डेली भेजा जाए।

स्वच्छता की जमीनी हकीकत की जांच हो।

क्योंकि अगर जनता टैक्स देती है, तो नगर निगम की भी जिम्मेदारी बनती है कि शहर को स्वच्छ रखने का दिखावा नहीं, वास्तव में काम करे।

यह सिर्फ दद्दा नगर की कहानी नहीं है, बल्कि यह सवाल है पूरे सिस्टम से—स्वच्छता सिर्फ स्लोगन है या सच में कोई प्राथमिकता?

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