डॉ सोनिका पारीक
वरिष्ठ पत्रकार
6 मई की रात भारत ने पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों पर मिसाइलें बरसाकर दुनिया को स्पष्ट संदेश दे दिया—अब भारत सहन नहीं करेगा। यह सिर्फ सैन्य कार्रवाई नहीं थी, यह भारत की बदली हुई विदेश नीति की घोषणा थी। अगर भारत पर हमला होगा, तो जवाब सिर्फ सीमा पर नहीं मिलेगा, बल्कि हमलावर की जमीन पर जाकर दिया जाएगा—वो भी पूरी ताकत के साथ।
बदल चुकी है नीति, बदल गया है नजरिया
भारत की यह नीति अब प्रतिक्रियात्मक नहीं, बल्कि निर्णायक और आक्रामक हो चुकी है। ऑपरेशन सिंदूर इसका उदाहरण है। इस अभियान के जरिए भारत ने न सिर्फ आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया, बल्कि एक साफ संदेश भी दे दिया कि अब खून बहाने वालों के लिए कोई जगह सुरक्षित नहीं। भारत उन्हें ढूंढ़ निकालेगा और वहीं खत्म करेगा।
स्वदेशी हथियार, वैश्विक पहचान
इस ऑपरेशन ने एक और उपलब्धि दी—भारतीय हथियार प्रणाली की विश्वसनीयता। बिना किसी बाहरी समर्थन के की गई यह कार्रवाई भारत की स्वदेशी मिसाइल तकनीक की ताकत को दर्शाती है। ‘आकाश’ और ‘ब्रह्मोस’ जैसी प्रणालियों ने साबित कर दिया कि भारत न सिर्फ लड़ सकता है, बल्कि तकनीक के मोर्चे पर भी आत्मनिर्भर है।
संघर्ष विराम पर सवाल
ऑपरेशन सिंदूर महज चार दिनों में समाप्त हो गया, जिसके बाद संघर्ष विराम की घोषणा हुई। लेकिन सोशल मीडिया और जनमानस में यह सवाल उठने लगे कि जब पाकिस्तान पर भारत का दबदबा स्थापित हो चुका था, तब युद्धविराम क्यों किया गया? बहुतों को उम्मीद थी कि यह कार्रवाई पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को भारत में शामिल करने का रास्ता खोल सकती थी। कुछ को यहां तक विश्वास था कि बलूचिस्तान तक में उथल-पुथल हो सकती थी।
ट्रंप की बयानबाज़ी और अमेरिका की भूमिका
इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के अचानक आए बयान ने इस संघर्ष विराम को और भी संदिग्ध बना दिया। उन्होंने दावा किया कि उनकी पहल पर संघर्षविराम हुआ, लेकिन इससे कई सवाल उठे। क्या पाकिस्तान अमेरिकी दबाव में युद्धविराम की भीख मांग रहा था? कुछ अमेरिकी अखबारों ने यही संकेत दिए हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान अब भारत के हमलों से इतना डरा हुआ है कि उसे बाहरी ताकतों की शरण लेनी पड़ रही है।
कूटनीति में बदलाव की वजह
प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि “खून और पानी साथ नहीं बह सकते” और “आतंक और व्यापार एक साथ नहीं चल सकते”। ये शब्द नहीं, नीति के संकेत हैं। अब भारत आतंक फैलाने वाले देशों को व्यापारिक साझेदार नहीं मानेगा, और न ही कूटनीतिक रियायत देगा।
भारत की इस बदली रणनीति के पीछे उसकी आर्थिक और सैन्य शक्ति है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार भारत जल्द ही जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। और उसकी स्वदेशी रक्षा ताकत अब न सिर्फ आत्मनिर्भरता बल्कि एक्सपोर्ट की ओर बढ़ रही है। आर्थिक और सैन्य ताकत मिलकर भारत को आत्मविश्वास दे रही हैं—और यही आत्मविश्वास उसकी विदेश नीति को बदल रहा है।
अब सिर्फ कश्मीर नहीं, आतंक है मुख्य मुद्दा
पाकिस्तान लंबे समय से कश्मीर का राग अलापता रहा है। लेकिन ऑपरेशन सिंदूर ने इस नैरेटिव को पलट दिया है। अब भारत ने साफ कर दिया है कि पाकिस्तान से कोई बातचीत होगी तो वह आतंकवाद और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर होगी, न कि संप्रभु भारत के किसी हिस्से पर।
नई चेतावनी, नई चुनौती
बालाकोट और सर्जिकल स्ट्राइक के समय भारत ने संयम बरता। लेकिन ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने अपनी सीमाओं से बाहर जाकर (बिना जमीन पर उतरे) पाकिस्तानी सैन्य ढांचों पर हमला किया। यह इशारा है कि अब भारत की जवाबी रणनीति सीमित नहीं रहेगी। भारत अब आतंक का पीछा उसके अड्डों तक करेगा—चाहे वे कहीं भी हों।
ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं था, यह भारत की बदलती नीति का प्रतीक है। यह स्पष्ट संकेत है कि अब भारत आतंकवाद को केवल सुरक्षा चुनौती नहीं, राष्ट्रीय अस्मिता पर हमला मानता है—और इसका जवाब भी उसी स्तर पर देगा। भारत अब अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए किसी की अनुमति का इंतजार नहीं करेगा। इस ऑपरेशन ने सिर्फ पाकिस्तान नहीं, बल्कि दुनिया भर के उन देशों को भी चेतावनी दी है जो आतंक को परोक्ष या अपरोक्ष रूप से समर्थन देते हैं। अब भारत वह देश है जो चुप नहीं बैठेगा—बल्कि चोट का जवाब वहां देगा, जहां से चोट चली है।
Disclemer :- लेखिका वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है। ये लेखिका के अपने विचार है समाचार पत्र व संपादक मंडल का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।









