नेपाल सरकार ने आधी रात बड़ा कदम उठाते हुए फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, X, रेडिट और लिंक्डइन जैसे 26 बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगा दिया है। सरकार का कहना है कि इन कंपनियों ने नए सोशल मीडिया कानूनों का पालन नहीं किया। कोर्ट के आदेश के बाद सभी प्लेटफॉर्म्स को सात दिन का समय दिया गया था कि वे नेपाल सरकार के साथ रजिस्टर करें, लेकिन सिर्फ पाँच कंपनियों ने नियमों को माना। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार ने इसके बाद सभी नॉन-कम्प्लायंट प्लेटफॉर्म्स को बंद करने का आदेश जारी कर दिया।
इस अचानक फैसले का असर नेपाल की अर्थव्यवस्था और समाज दोनों पर दिखाई देने लगा है। पर्यटन उद्योग, जो पूरी तरह सोशल मीडिया प्रमोशन पर निर्भर है, ठप हो गया है। लाखों नेपाली जिनके परिवार विदेशों में रहते हैं, उनसे संपर्क टूट गया है। छोटे-बड़े बिज़नेस जिनकी कमाई फेसबुक और इंस्टाग्राम से होती थी, वो बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। राजधानी काठमांडू में पत्रकार और एक्टिविस्ट्स ने सड़कों पर उतरकर इस फैसले का विरोध किया। लोगों ने प्लेकार्ड्स उठाए जिन पर लिखा था – “नो शटडाउन ऑफ सोशल नेटवर्क्स”, “डेमोक्रेसी हैक्ड” और “फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन इस आवर राइट”।
ओली सरकार का कहना है कि “राष्ट्र की स्वतंत्रता और संप्रभुता कुछ लोगों की नौकरियों और बिज़नेस से बड़ी है।” लेकिन आलोचक इसे लोकतंत्र पर सीधा हमला बता रहे हैं। अब बड़ा सवाल ये है कि क्या सोशल मीडिया पर पूरा कंट्रोल सरकार के हाथों में होना चाहिए? और अगर ऐसा कदम भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में उठाया गया, तो क्या लोग चुप रहेंगे या विरोध करेंगे? यह बहस नेपाल से निकलकर पूरी दुनिया में छिड़ गई है।









