पत्रकार सुरक्षा की अनदेखी!
पत्रकार लंबे समय से “पत्रकार सुरक्षा कानून” की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन सरकार और प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। चाहे सरकार किसी भी पार्टी की हो, पत्रकारों को अक्सर अनदेखा किया जाता है और उनकी सुरक्षा को नज़रअंदाज़ किया जाता है। यह सवाल उठता है कि सरकार और प्रशासन पत्रकारों को केवल अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करके अपनी वाहवाही लूटने के अलावा कुछ और करेंगे या नहीं?
प्रशासन की दोहरी मानसिकता !
इतिहास और समय इस बात के गवाह हैं कि यदि किसी मंत्री या प्रशासनिक अधिकारी को छोटी सी भी चोट आती है, तो पूरा प्रशासनिक तंत्र हरकत में आ जाता है। लेकिन जब बात पत्रकारों की आती है, तो वही प्रशासनिक अमला और सरकार उनकी सुरक्षा को भगवान भरोसे छोड़ देती है।
लोकतंत्र का महत्वपूर्ण धड़ा
सरकार और प्रशासन यह भूल जाते हैं कि पत्रकार भी लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे वही लोग हैं जो दिन-रात, छुट्टी और त्यौहार की परवाह किए बिना काम करते हैं और प्रशासन की खबरों को जनता तक पहुंचाते हैं। ऐसे में पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार को नज़रअंदाज़ करना अस्वीकार्य है।
पत्रकार भी इंसान हैं
क्या पत्रकार इंसान नहीं हैं? क्या उनके दुख-दर्द नहीं होते? क्या उनके परिवार उनके लिए चिंतित नहीं होते? यह सवाल सरकार और प्रशासन को सोचने पर मजबूर करता है। पत्रकार भी अपनी सुरक्षा और सम्मान की उम्मीद करते हैं।
प्रशासनिक एकता और पत्रकारों की अनदेखी !
हाल ही में प्रशासनिक लॉबी एक व्यक्ति के साथ अनुचित व्यवहार होने पर एकजुट हो गई। लेकिन जब पत्रकारों की सुरक्षा की बात आती है, तो वही एकता नदारद रहती है। यह दोहरा रवैया अब और नहीं चल सकता।
चेतावनी और मांग
नरेश मीणा और उसके समर्थकों के लिए यह चेतावनी है कि आज तुम नैशनल सेलिब्रिटी हो, तो पत्रकारों की वजह से हो। पत्रकारों पर हमला करने की हिमाकत जो कि गई की है, इसे लेकर तुम्हें अपनी गलती भी स्वीकारनी होगी। पत्रकार समुदाय से माफी मांगनी होगी और जिन लोगों ने भी पत्रकारों पर हमला किया है उन तथाकथित गुंडों को थाने जाकर अपनी गिरफ्तारी देनी होगी।
सरकार और प्रशासन से अपील
सरकार और प्रशासन से यही अपील है कि अब तो भगवान के डर से अपनी आंखें खोलें और पत्रकार सुरक्षा कानून को तुरंत लागू करें। इससे पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी और लोकतंत्र मजबूत बनेगा।









