धर्म के नाम पर धंधा! धर्मेंद्र धुर्वे बना गोंड समाज के मंदिर का ठेकेदार — डर, दबाव और पैसे की गंदी राजनीति का खुलासा ।

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(अंकित सेन स्टेट हेड उजला दर्पण समाचार पत्र )

भेड़ाघाट (जबलपुर)। गोंड समाज का मंदिर, जो सरस्वती घाट के पास सामाजिक आयोजनों के लिए बनाया गया था, अब एक व्यक्तिगत वसूली और दबाव की राजनीति का केंद्र बन गया है। यह मंदिर अब समाज सेवा से ज़्यादा, धर्मेंद्र धुर्वे के निजी नियंत्रण और डर के माहौल के लिए बदनाम हो रहा है।

सेवकों के चेहरे पर खामोशी, आंखों में डर — भरोसे ने खोल दी जुबान

मंदिर की देखरेख कर रहे सेवक पहले कुछ भी बोलने से कतराते रहे। लेकिन जब उजला दर्पण की टीम ने भरोसा दिलाया, तो सच्चाई बाहर आई।

“यहां कोई कुछ नहीं बोलता, सब डरे रहते हैं।”

“धर्मेंद्र धुर्वे ने सबको चुप करा रखा है।” नशे में आकर सबको धमकाता है। जबकि यह बड़ादेव भगवान का मंदिर है , यहां पर यह सब नहीं होना चाहिए।

“हम तो झाड़ू-साबुन के लिए भी तरसते हैं, लेकिन भंडारे-शादी के आयोजकों से वो पैसा खुद वसूलते हैं।”

जब टीम ने रजिस्टर मांगा तो पहले टालमटोल की गई। लेकिन बाद में एक रजिस्टर सामने आया, जिसमें साफ तौर पर विवाह-भंडारे जैसी गतिविधियों से ‘सहायता राशि’ वसूली की एंट्रियां थीं — और इनमें धर्मेंद्र धुर्वे का नाम भी दर्ज था।

कानूनी अधिकार किसके पास? उजला दर्पण के सवालों से खुली पोल।

जब उजला दर्पण के स्टेट हेड ने धर्मेंद्र धुर्वे से सीधा सवाल किया —

“क्या आपकी संस्था रजिस्टर्ड है? किस अधिकार से समाज के नाम पर पैसे ले रहे हैं?”

तो धर्मेंद्र धुर्वे ने बेहद चौंकाने वाला जवाब दिया:

“नहीं, हमारी संस्था रजिस्टर्ड नहीं है। और हम यह राशि अपनी स्वयं की इच्छा से लेते हैं।” और जो तुम अपना काम करो , खबर लगाओ , मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।

इस स्वीकारोक्ति ने यह साफ कर दिया कि बिना किसी वैधानिक पहचान के, सिर्फ खुद को “अध्यक्ष” बताकर धर्मेंद्र धुर्वे समाज के नाम पर गैरकानूनी वसूली कर रहे हैं।

 

‘होटल यात्री पैसेंजर’ के नाम पर भी समाज को गुमराह करने का प्रयास ।

आखिर यह होटल की भी सहमती है। आखिर क्या मामला है। होटल की खोज करने के बाद सामने आयेगा।

मामला यहीं खत्म नहीं होता — धर्मेंद्र धुर्वे अब ‘होटल यात्री पैसेंजर’ नाम का रजिस्टर रखकर मंदिर को होटल से जोड़कर पेश कर रहे हैं, ताकि आमजन को यह भ्रम रहे कि यह भी समाज के नियंत्रण में है। जबकि हकीकत यह है कि न तो यह संरचना मंदिर से जुड़ी है, और न ही समाज द्वारा मान्यता प्राप्त।

 

सूत्रों के अनुसार, धर्मेंद्र धुर्वे एक प्राइवेट शिक्षक हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है:

क्या एक शिक्षक को समाज को शिक्षित करना चाहिए या अवैध तरीके से पैसा वसूलना चाहिए?

क्या यह आचरण किसी शिक्षक को शोभा देता है?

अब गोंड समाज को चुप्पी तोड़नी होगी — वरना समाज की छवि मिट्टी में मिल जाएगी । धर्मेंद्र धुर्वे के अलावा मंदिर में मिले रजिस्टर में अन्य लोगों के नाम भी जो आप रजिस्टर की फोटो में देख सकते हैं।

बिना रजिस्ट्रेशन , पैसे की वसूली

सेवकों में भय का माहौल

मंदिर की आड़ में निजी रूप से स्वयं अवैध तरीके से वसूली करना और धर्मेंद्र धुर्वे द्वारा बोला गया कि समिति द्वारा इस मंदिर को ओवर टेक किया गया है, भ्रम फैला रहा है। जब पूछा गया कि समिति का नाम क्या है तो नाम बताने से किया मना।

यह अब सिर्फ एक व्यक्ति का मामला नहीं रहा — यह पूरी गोंड समाज की प्रतिष्ठा और आत्म-सम्मान का सवाल है।

 

प्रशासन और समाज दोनों को सामने आना होगा

 

गोंड समाज के जिम्मेदार नेताओं, संगठनों और प्रशासन को चाहिए कि धर्मेंद्र धुर्वे के खिलाफ आर्थिक, सामाजिक और कानूनी कार्रवाई की जाए।

यह मामला सिर्फ एक मंदिर नहीं, समाज के विश्वास का अपमान है।

जिला कलेक्टर जबलपुर को इसे संज्ञान में लेना चाहिए।

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